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लेखनी कविता -21-Mar-2022

समय का समंदर और जिंदगी की नाव,
फंसी बीच भंवर में कैसे लगे किनारे पर।

हालातों की लहरों से हिचकोले खाती,
पार करें कैसे दुःख-सुख के भवसागर।

रिश्तों की कसौटी में उलझी यह नाव,
कभी इस डगर पे तो कभी उस डगर।

मोह की डोरी से बंधी हुई हैं यह सांसे,
कैसे छोड़ कर जाऊं, बसा हुआ नगर।
 
रिश्तों की बेड़ियों बंधी पैरों के नीचे, 
स्मृतियो का जल भी बहता झरझर

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10 Comments

Ekta shrivastava

22-Mar-2022 12:24 PM

बहुत बढ़िया👌👌

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Dr. Arpita Agrawal

22-Mar-2022 12:07 AM

अति सुंदर 👌👌

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Satvinder Singh

22-Mar-2022 12:38 AM

धन्यवाद आपका

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Swati chourasia

21-Mar-2022 11:47 PM

बहुत सुंदर 👌

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